ट्रंप-ज़ेलेंस्की बहस पर क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ, इसके पीछे की रणनीति क्या है?

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ट्रंप-ज़ेलेंस्की बहस पर क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ, इसके पीछे की रणनीति क्या है?

पूरे मामले पर अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा है कि ज़ेलेंस्की को माफ़ी मांगनी चाहिए. रुबियो ने कहा, ''राष्ट्रपति ट्रंप ने कई अहम समझौतों को अंजाम तक पहुँचाया है और आप (ज़ेलेंस्की) इतनी आक्रामकता के साथ बात करेंगे तो कौन आपसे बात करेगा? ज़ेलेंस्की शांति समझौते की बात करते हैं लेकिन शायद चाहते नहीं हैं.''

लेकिन ज़ेलेंस्की ने माफ़ी मांगने से इनकार कर दिया है. फ़ॉक्स न्यूज़ से बातचीत में ज़ेलेंस्की ने कहा, ''मुझे नहीं लगता है कि माफ़ी मांगने की ज़रूरत है. मैं राष्ट्रपति और अमेरिकी लोगों का बहुत सम्मान करता हूँ. मुझे लगता है कि हमें ईमानदार और अपने विचारों को लेकर बहुत खुला होना चाहिए. मुझे नहीं लगता है कि मैंने कुछ ग़लत किया है. लोकतंत्र और स्वतंत्र मीडिया का आदर करते हुए मैं कहना चाहता हूँ कि कुछ चीज़ों पर मीडिया से अलग बात करनी चाहिए.''

ट्रंप और वेंस ने ज़ेलेंस्की से कहा कि इतनी मदद के बावजूद ज़ेलेंस्की आभार व्यक्त नहीं कर रहे हैं.

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बहस के दौरान किसने क्या कहा?

ट्रंप ने ज़ेलेंस्की से कहा था, ''अभी आप बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं. आपने ख़ुद को बहुत मुश्किल स्थिति में ला दिया है. आपके पास अभी दांव लगाने के लिए कुछ नहीं है. ऐसे में आप बहस नहीं कर सकते.''

इसके जवाब में ज़ेलेंस्की ने कहा, ''मैं कोई कार्ड नहीं खेल रहा हूँ.''

इस पर ट्रंप ने ऊंची आवाज़ में कहा, ''आप लाखों लोगों की ज़िंदगियां दांव पर लगा रहे हैं. आप तीसरे विश्व युद्ध का जोखिम ले रहे हैं.''

इस बीच जेडी वेंस ने कहा, ''आपके देश की जो तबाही हो रही है, उसे ख़त्म करने के लिए जिस तरह की डिप्लोमैसी जारी है, मैं उसकी बात कर रहा हूँ. राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की मेरा मानना है कि आप ओवल ऑफिस आकर मीडिया के सामने जिस तरीक़े से बहस कर रहे हैं, वह अपमान करने की तरह है. यूक्रेन इस जंग में मैनपावर की समस्या से भी जूझ रहा है.''

इस पर ज़ेलेंस्की ने कहा कि ''आप कभी यूक्रेन आए हैं? एक बार आइए तब पता चलेगा कि हम किन समस्याओं का सामना कर रहे हैं.''

इस पर वेंस ने कहा कि ''मैंने स्टोरी देखी हैं और मुझे पता है कि आप लोगों को प्रॉपेगैंडा टूर पर ले जाते हैं. आपके पास सेना में भर्ती होने के लिए लोग नहीं हैं और आप ओवल ऑफिस में आकर अमेरिकी प्रशासन पर हमला कर रहे हैं जो युद्ध रोकने की कोशिश में लगा है.''

इस पर ज़ेलेंस्की ने कहा, ''युद्ध में हर किसी को दिक़्क़तों से जूझना पड़ता है, यहाँ तक कि आपको भी. लेकिन अभी आपको इसका अहसास नहीं है लेकिन भविष्य में होगा."

इस पर ट्रंप ने कहा- ''आप हमें नहीं बताइए कि क्या अहसास होगा और क्या नहीं.''

इस बीच ज़ेलेंस्की ने वेंस से कहा कि आप ऊंची आवाज़ में बात कर रहे हैं तो ट्रंप ने बीच में ही टोका और कहा कि ''नहीं वेंस ऊंची आवाज़ में बात नहीं कर रहे हैं.''

सीएनएन से व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने बताया, ''तीखी बहस के बाद ज़ेलेंस्की और ट्रंप अलग-अलग कमरे में चले गए. उसके बाद ट्रंप ने यूक्रेन के लोगों को वहाँ से जाने के लिए कह दिया.''

''यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल ने इसका विरोध किया और कहा कि वे बातचीत जारी रखना चाहते हैं. लेकिन उन्हें मना कर दिया गया. तयशुदा संयुक्त प्रेस वार्ता भी रद्द कर दी गई और ज़ेलेंस्की अमेरिका से खनिज संपदा समझौते पर हस्ताक्षर किए बिना अपनी ब्लैक एसयूवी से चले गए.''

अब ज़ेलेंस्की के पास क्या हैं विकल्प

अमेरिकी मीडिया में कहा जा रहा है कि इससे पहले किसी मेहमान पर कोई अमेरिकी राष्ट्रपति इतना हमलावर नहीं हुआ था, जैसा कि ट्रंप का ग़ुस्सा ज़ेलेंस्की पर फूट पड़ा. ट्रंप ने यूक्रेन को उसके हाल पर छोड़ देने की भी धमकी दी.

अब पूछा जा रहा है कि इसके बाद ज़ेलेंस्की कहाँ जाएंगे और क्या करेंगे? अमेरिकी न्यूज़ नेटवर्क सीएनएन के चीफ़ इंटरनेशनल सिक्यॉरिटी कॉरस्पॉन्डेंट निक पैटन वाल्श ने लिखा है, ''ज़ेलेंस्की ने अपने कार्यकाल के शायद सबसे निर्णायक पल का सामना कर लिया है. उन्हें अब या तो इस विवाद को जादुई तरीक़े से ख़त्म करना होगा या अमेरिका के बिना किसी तरह से गुज़ारा करना होगा. या फिर सबसे आसान और अंतिम विकल्प होगा कि वह अपने पद से इस्तीफ़ा दे दें. इसके बाद किसी और को इसे सुलझाने का मौक़ा दें. हालांकि ज़ेलेंस्की का सत्ता से हटना रूस के पक्ष में जाएगा. युद्ध के बीच में ज़ेलेंस्की के इस्तीफ़े से मोर्चे पर भी संकट खड़ा होगा. युद्ध के समय में यूक्रेन में राजनीतिक बदलाव की प्रक्रिया भी बहुत जटिल होगी क्योंकि चुनाव में पारदर्शिता को सुनिश्चित करना कठिन होगा.''

पूरे मामले पर रूस में भी काफ़ी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन के विशेष दूत किरिल दिमित्रिव ने ज़ेलेंस्की और ट्रंप की बहस के वीडियो क्लिप पर लिखा, ''ऐतिहासिक.''

रूस की सरकारी न्यूज़ एजेंसी तास ने हेडलाइन दी है- ज़ेलेंस्की ने वार्ता में बाधा डाली, बहस की और प्रेस के सामने आक्रामक रुख़ दिखाया. एक और रूसी सरकारी मीडिया आउटलेट आरआईए नोवोस्ती की हेडलाइन है- व्हाइट हाउस में ज़ेलेंस्की की सनक से यूक्रेन की संसद भी हैरान.

डेलावेयर यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफ़ेसर डॉक्टर मुक़्तदर ख़ान ने एक वीडियो पोस्ट कर ज़ेलेंस्की के रुख़ की आलोचना की है. मुक़्तदर ख़ान ने कहा, ''मैं आज डोनाल्ड ट्रंप के साथ हूँ. ज़ेलेंस्की इतने अहंकार के साथ कैसे बात कर सकते हैं? उन्होंने अमेरिकी मदद को अपना अधिकार मान लिया है. ज़ेलेंस्की अमेरिकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को भाषण दे रहे थे. मुझे लगता है कि ज़ेलेंस्की ने ऐसा जानबूझकर किया है ताकि अमेरिका के लोगों की सहानुभूति जीत सकें.''

क्या आक्रामक थे ज़ेलेंस्की?

प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान ने कहा, ''मैं इसकी कल्पना नहीं कर सकता, जिस तरह से वह अमेरिकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति से बात कर रहे थे. आप इस तरह से उस देश से बात कर रहे हैं, जिस पर आपका वजूद टिका है. अमेरिकी मदद के बिना यूक्रेन एक हफ़्ते भी रूस से जंग नहीं लड़ सकता है. अमेरिका यूक्रेन के साथ 2014 से ही है. अमेरिका तब से यूक्रेन को हर तरह की मदद दे रहा है. मेरे लिए तो यह पूरी तरह से हैरान करने वाला था.''

बात केवल ज़ेलेंस्की की नहीं है. ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू व्हाइट हाउस में पहले मेहमान थे और ट्रंप ने इनके साथ वो सब कुछ किया था, जो नेतन्याहू चाहते थे. लेकिन इसके बाद वो चाहें जॉर्डन के किंग हों, भारतीय प्रधानमंत्री मोदी हों, फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों हों या ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर हों, सबके साथ ट्रंप ने बहुत सख़्ती से बात की है लेकिन सबने स्थिति को नाज़ुक होने से बचाया है. लेकिन ज़ेलेंस्की ऐसा नहीं कर पाए.

ज़ेलेंस्की से बहस के बाद ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर लिखा, ''ज़ेंलेस्की उस बातचीत में शामिल नहीं होना चाहते हैं, जिसमें अमेरिका शामिल है. उन्हें लगता है कि अमेरिका इसका फ़ायदा उठा रहा है. लेकिन हम फ़ायदा नहीं, शांति चाहते हैं. ज़ेलेंस्की ने अमेरिका का अनादर किया है. जब उन्हें लगे कि शांति के लिए तैयार हैं, तब यहाँ आ सकते हैं.''

ट्रंप की इस टिप्पणी पर अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू के अंतरराष्ट्रीय संपादक स्टैनली जॉनी ने लिखा है, ''इसके बाद ज़ेलेंस्की के पास क्या विकल्प बचता है? या तो उन्हें व्हाइट हाउस फिर से जाकर ट्रंप की कही हर बात मान लेनी चाहिए या वापस यूक्रेन जाकर राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए. हालांकि उनका कार्यकाल पिछले साल ही ख़त्म हो गया था. मुझे ज़ेलेंस्की के लिए वाक़ई दुख हो रहा है. लेकिन युद्ध के समय के राष्ट्रपति को अंदाज़ा होना चाहिए था कि ऐसा हो सकता है. पश्चिम के बाहर के ज़्यादातर अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार पहले ही चेताते रहे हैं कि ऐसा ही होगा. अगर ज़ेलेंस्की पुतिन के साथ समझौता कर लेते तो इससे कम अपमानजनक होता.''

थिंक टैंक ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूट की सीनियर फेलो तन्वी मदान ने ट्रंप और ज़ेलेंस्की की बहस से जोड़ते हुए 1962 में भारत-चीन जंग के बीच सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुशचेव की नेहरू की उस सलाह का हवाला दिया है, जिसमें ख्रुशचेव ने नेहरू से कहा था कि भावनात्मक उफान से बाहर निकल चीन के युद्धविराम प्रस्ताव को स्वीकार कर लें.

तन्वी मदान ने लिखा है, ''नेहरू को पता था कि उनके जवाब से सोवियत संघ नाराज़ हो सकता है, इसके बावजूद उन्होंने सरेंडर के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था.''

ट्रंप ज़ेलेंस्की को लेकर सख़्त क्यों हैं?

अगस्त 1990 में जब इराक़ ने कुवैत पर हमला किया था तो अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज हर्बर्ट वॉकर बुश थे. तब बुश ने कहा था कि इस तरह की आक्रामकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी और उन्होंने अमेरिकी सैनिकों को कुवैत भेज दिया था.

बुश के इसी फ़ैसले को साझा करते हुए ब्रिटिश इतिहासकार नायल फर्गुसन ने यूक्रेन के मामले में डोनाल्ड ट्रंप के रुख़ को आड़े हाथों लेते हुए लिखा है कि भविष्य में इतिहास के स्टूडेंट्स पूछेंगे कि एक संप्रभु देश पर एक तानाशाह के हमले को लेकर एक रिपब्लिकन राष्ट्रपति ने बुश वाली प्रतिक्रिया क्यों छोड़ दी?

नायल फर्गुसन का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप को यूक्रेन में अमेरिकी सैनिकों को भेजना चाहिए था ताकि रूस को युद्ध के मैदान में मात दी जा सके.

नायल फर्गुसन को जवाब देते हुए अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कहा, ''यह नैतिक कचरा है, जो वैश्विक स्तर के बुद्धिजीवियों के लिए आलंकारिक करंसी की तरह है. दरअसल, उनके पास कहने के लिए कुछ और होता भी नहीं है. पिछले तीन सालों से मैं और राष्ट्रपति ट्रंप दो आसान तर्क दे रहे हैं. पहला तर्क है- अगर ट्रंप राष्ट्रपति होते तो यूक्रेन और रूस की जंग शुरू नहीं होती. दूसरी बात यह है कि न तो यूरोप, न बाइडन प्रशासन और न यूक्रेन इस जंग को जीत पाते. ये दोनों बातें तीन साल पहले भी सच थीं, दो साल पहले भी सच थीं, पिछले साल भी सच थीं और आज भी सच हैं.''

वेंस ने कहा, ''यूक्रेन के लिए नायल के पास क्या प्लान है? क्या एक और मदद पैकेज? क्या आपको ज़मीनी हक़ीक़त पता है कि रूस ने कैसे बढ़त हासिल कर ली है? क्या यूरोप लड़ने की हालत में है? आपने जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश के उद्धरण का उल्लेख किया है, जो अलग समय और दूसरे युद्ध का है. ऐसे लोग आख़िरकार अप्रासंगिक इतिहास का ही सहारा लेते हैं. राष्ट्रपति ट्रंप सच्चाई के आधार पर चीज़ों को देख रहे हैं. मैं आपको यहाँ कुछ तथ्य बता रहा हूँ.''

यूक्रेन को युद्ध में हासिल क्या हुआ?

वेंस ने कहा, ''पहली बात यह कि यूरोप के हमारे सहयोगी अमेरिका की उदारता से मिलने वाले फंड पर निर्भर रहे हैं. इन देशों की घरेलू नीति ख़ासकर माइग्रेशन के मामले में ज़्यादातर अमेरिकी नागरिकों की संवेदनशीलता के ख़िलाफ़ होती है. इसके बावजूद इन्हें लगता है कि रक्षा के मामले में अमेरिका पर निर्भर रहें.''

जेडी वेंस ने इसी महीने म्यूनिख सिक्यॉरिटी कॉन्फ्रेंस में कहा था, ''यूरोप को ख़तरा रूस से नहीं है बल्कि ख़ुद से है.''

रूस और यूक्रेन के बीच फ़रवरी 2022 में शुरू हुई जंग के तीन साल हो गए हैं. इन तीन सालों में दुनिया कई तरह से बदल चुकी है लेकिन जंग का समाधान नहीं मिला.

जब जंग शुरू हुई थी तो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन थे और युद्ध के तीन साल पूरे होने वाले थे तो डोनाल्ड ट्रंप आ चुके थे. ट्रंप अब युद्ध बंद कराने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात कर रहे हैं लेकिन इस पूरी बातचीत में यूक्रेन और रूस को शामिल नहीं किया गया है.

इस बीच रूस ने गुरुवार को स्पष्ट कर दिया कि फ़रवरी 2022 के बाद यूक्रेन के जिन इलाक़ों पर उसका नियंत्रण है, उसे वह नहीं छोड़ेगा. युद्ध बंद करने के लिए इस्तांबुल में रूस और अमेरिका के अधिकारी मिलने जा रहे हैं, उससे पहले रूस ने एक लक़ीर खींच दी है.

रूसी सरकार के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने पत्रकारों से कहा, ''जो इलाक़े रूसी फेडरेशन के विषय बन गए हैं, वे हमारे संविधान में शामिल हो गए हैं. ये इलाक़े अब रूस के अविभाज्य अंग बन गए हैं. इसे छोड़ने पर तो अब कोई बात ही नहीं हो सकती है.''

फ़रवरी 2022 में जब यूक्रेन पर रूस ने हमला किया था, तब उसने यूक्रेन के चार इलाक़ों- दोनेत्सक, लुहांस्क, ज़ापोरिज़्ज़िया और खर्सोन को ख़ुद में मिलाने की घोषणा की थी. 2014 में रूस ने यूक्रेन के क्राइमिया पर भी क़ब्ज़ा कर लिया था.

चीन क्या रूस और अमेरिका की क़रीबी से परेशान है?

दिमित्री पेस्कोव के बयान पर यूक्रेन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने जवाब देते हुए कहा है कि यूक्रेन की सीमा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य है और अगर कोई देश अपने संविधान का हवाला देता है तो इससे ज़्यादा हास्यास्पद और क्या हो सकता है.

रूस ने दोनेत्सक और लुहांस्क के ज़्यादातर हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर लिया है लेकिन ज़ापोरिज़्ज़िया और खर्सोन के कुछ ही हिस्सों पर नियंत्रण है. इसके अलावा रूस ने उत्तर-पूर्वी यूक्रेन के खारकिव के कुछ हिस्सों पर भी क़ब्ज़ा कर लिया है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की पहले भी कह चुके हैं कि उनकी सेना संसाधनों की कमी से जूझ रही है, इसलिए अपने भूभाग को फिर से हासिल नहीं कर पा रही है. ज़ेलेंस्की ने कहा है कि डिप्लोमैसी के ज़रिए भी कुछ भूभाग को हासिल किया जा सकता है.

अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसथ ने 12 फ़रवरी को ब्रसल्स में आयोजित डिफेंस समिट में कहा था, ''आपकी तरह हम भी एक संप्रभु और संपन्न यूक्रेन चाहते हैं. लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि 2014 के पहले यूक्रेन की जो सीमा थी, उसे वापस हासिल करना हक़ीक़त से परे है. इस अवास्तविक लक्ष्य के पीछे भागने से युद्ध तो लंबा खिंचेगा ही, भारी नुकसान भी उठाना पड़ेगा.''

रूस ने मार्च 2014 में यूक्रेन के क्राइमिया को ख़ुद में मिला लिया था. तब क्राइमिया में रूस समर्थक अलगाववादियों ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ सशस्त्र विद्रोह कर दिया था. यूक्रेन के अभी 20 प्रतिशत भूभाग पर रूस का नियंत्रण है, इसमें मुख्य रूप से यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी इलाक़े शामिल हैं.

पीट हेगसथ ने कहा था कि स्थायी शांति के लिए ज़रूरी है कि सुरक्षा की गारंटी हो और फिर से जंग शुरू ना हो. पीट हेगसथ ने यह भी कहा था, ''यूक्रेन को नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (नेटो) की सदस्यता देने से कोई ठोस समाधान नहीं मिलेगा.''

राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के व्हाइट हाउस जाने से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को कहा था कि यूक्रेन नेटो में शामिल होने का आइडिया भूल सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि नेटो ही शायद कारण है, जिससे सब कुछ शुरू हुआ. ट्रंप ने यह भी कहा कि वह राष्ट्रपति पुतिन से आमने-सामने मुलाक़ात करने वाले हैं और संभव है कि यूक्रेन में जारी युद्ध ख़त्म करने के लिए कोई समझौता होगा.

ट्रंप का यूक्रेन को लेकर ऐसा रुख़ क्यों है? कई लोग मानते हैं कि यूक्रेन के मामले में नरमी बरत ट्रंप चीन और रूस की जुगलबंदी को कमज़ोर करना चाहते हैं.

दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र में प्रोफ़ेसर संजय कुमार पांडे कहते हैं, ''एक विश्लेषण यह भी है कि ट्रंप चीन और रूस को अलग करना चाहते हैं. ऐसा होता है तो अमेरिका पूरी तरह से चीन पर ध्यान केंद्रित कर सकता है.''

सेंटर फोर यूरोपियन पॉलिसी एनालिसिस की एलेना डैवलिकनोवा ने मॉस्को टाइम्स में लिखा है, ''यह एक भ्रम है कि यूक्रेन के मामले में रूस के प्रति नरमी दिखाने से चीन और रूस को अलग किया जा सकता है. लेकिन रूस का लक्ष्य यूक्रेन की सीमा तक ही सीमित नहीं है. रूस यूक्रेन से आगे यूरोप में बढ़ेगा. रूस ऊर्जा ब्लैकमेल और प्रॉपेगैंडा के ज़रिए यूरोप में दख़ल पहले ही दे चुका है.''

यु जी, थिंक टैंक चैटम हाउस में एशिया पैसिफिक प्रोग्राम में सीनियर रिसर्च फेलो हैं. उन्होंने ब्रिटिश अख़बार फाइनैंशियल टाइम्स में 28 फ़रवरी को लिखा था कि "यूक्रेन के मामले में ट्रंप के अचानक यू-टर्न से चीन परेशान है. चीन को लग रहा है कि अमेरिका और रूस के बीच संबंधों में तेज़ी से सुधार हो रहा है. अमेरिका और रूस के बीच थोड़ा सा भी भरोसा बढ़ता है तो जिस तरह के घनिष्ठ संबंध रूस और चीन के बीच हैं, उसमें चीन असहज महसूस करेगा. चीन ने ट्रेड और राजनयिक स्तर पर रूस में काफ़ी निवेश किया है. रूस चीन का बड़ा कारोबारी साझेदार है और चीन को रूस से कई मामलों में फ़ायदा मिल रहा है.''

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